बजट 2021: मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन पर करना होगा फोकस, रोजगार के लिए बढ़ाना होगा निवेश – Newsaffairs.in


भारत ने आंकड़ों के हिसाब से भी अब तक के सबसे कमजोर वर्ष का सामना किया है, जो कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित रहा है। महामारी के शुरुआती महीनों से जून तक आर्थिकक गतिविधि‍यों में भारी गिरावट आई, इसके बाद सितंबर के बाद धीरे-धीरे इसमें सुधार हुआ। भारत इस मामले में सौभाग्यशाली रहा है कि यहां अन्य यूरोपीय देशों और कुछ पूर्वी एशियाई देशों की तरह कोरोना की दूसरी लहर नहीं आई है।

वित्त वर्ष 2021 के रियल जीडीपी में 7 से 8.5 फीसदी तक की गिरावट आने का अनुमान है, जो भारत के इतिहास में सबसे कम जीडीपी रेट होगा। एक अनुकूल आधार प्रभाव और आर्थिैक गतिविधि‍यों के फिर से पटरी पर लौटने को देखते हुए अगले वर्ष में रियल जीडीपी 8-9 फीसदी और नॉमिनल जीडीपी 12.5-13.5 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है। आर्थि क गतिविधि‍यों के पटरी पर लौटने के बावजूद कई ऐसे सेक्टर हैं, खासकर सेवाओं में, जो अब भी बुरी तरह प्रभावित हैं। इनमें हॉस्पिटलिटी, टूरिज्म, रेस्टोरेंट, एंटरटेनमेंट और एविएशन शामिल हैं।

बजट से हमारी प्राथमिक उम्मीद यही है कि यह विकासोन्मुख हो। नौकरियों के सृजन और रोजगार के लिए अर्थव्यवस्था में भारी निवेश की जरूरत है। निवेश का चक्र तो वास्तव में महामारी से पहले ही मंदा हो गया था, लेकिन अब उसमें कुछ अच्छे संकेत दिख रहे हैं, क्योंकि पिछले दो साल से दबी हुई मांग और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने तथा आपूर्ति चेन की तरह कंपनियों को आकर्षि‍त करने के सरकारी प्रयास से इसमें मदद मिली है। इसकी वजह से बहुत सी कंपनियां अपनी रणनीति में बदलाव कर चीन+1  मॉडल पर काम कर रही हैं।

आगे हम मैन्युफैक्चरिंग आधार को बढ़ाने, जो कि बड़े पैमाने पर नौकरी देने वाला सेक्टर है, की कोशि‍श के तहत पूंजीगत खर्च के लिए और प्रेरणा एवं प्रोत्साहन देख सकते हैं। आदर्श रूप से देखें तो निर्माण, किफायती मकान, रियल एस्टेट (कॉमर्शि‍यल सहित), पर्यटन, बुनियादी ढांचा (खासकर सड़कें, रेलवे) को वित्तीय प्रोत्साहन मिलना चाहिए, यह देखते हुए कि ये ऐसे सेक्टर हैं जिनमें कि सबसे ज्यादा मल्टीप्लायर इफेक्ट होता है।

जिन अन्य सेक्टर पर ध्यान देना चाहिए वे हैं एसएसएसई, ऐसा अनुमान है कि भारत में करीब 6.5 लाख छोटे उद्यम हैं, जो कृषि‍ के बाद सबसे ज्यादा नौकरियां देने वाला सेक्टर है। ऐसी प्रमुख एमएसएमई में फिर से तरक्की को रफ्तार लाने में मदद के लिए नीतियां बनानी काफी महत्वपूर्ण है, जो बड़ी कंपनियों को सप्लाई करने वाले चेन में हैं।

अब हम एक नए चक्र की तरफ बढ़ रहे हैं तो केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय को 4 लाख करोड़ से बढ़ाकर 5।5 लाख करोड़ रुपये तक करना होगा, ताकि जरूरी शुरुआती गति बन सके। राज्यों को भी आवंटन करना होगा क्योंकि बुनियादी ढांचे पर ज्यादातर खर्च राज्यों के स्तर पर होता है। 

चुनौतीपूर्ण सकल राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की चुनौती को देखते हुए कुल खर्च में काफी संतुलन बनाकर रखना होगा। राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2022 में 5 फीसदी को पार हो सकता है (वित्त वर्ष 2021 में यह 7।5 फीसदी हो सकता है, जबकि बजट लक्ष्य 3.5 फीसदी था।) राज्यों और केंद्र का मिलाकर राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2022 में 11 से 12 फीसदी तक पहुंच सकता है।

(लेखक – पीजीआईएम इंडिया म्यूचुअल फंड के सीआईओ (फिक्स्ड इनकम) कुमारेश रामकृष्णन ने बजट पर अपनी राय दी।) 

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